Monday, December 13, 2010

ज्ञानमधुशाला (Ghazal) - Anwer Jamal

कैसे कोई समझाएगा पीड़ा का सुख होता क्या
गर सुख होता पीड़ा में तो खुद वो रोता क्या

इजाज़त हो तेरी तो हम कर सकते हैं बयाँ
दुख की हक़ीक़त भी और दुख होता क्या

ख़ारिज में हवादिस हैं दाख़िल में अहसास फ़क़त
वर्ना दुख होता क्या है और सुख होता क्या

सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या

भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या

आशिक़ झेलता है दुख वस्ल के शौक़ में
बाद वस्ल के याद किसे कि दुख होता क्या

पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या
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ख़ारिज - बाहर, हवादिस - हादसे, दाख़िल में - अंदर
हुक्म - ईशवाणी, ख़ुदी - ख़ुद का वुजूद, वस्ल- मिलन

Friday, December 10, 2010

शुक्र और शिकायत {Ghazal} - Farookh Qaisar

अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए

हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए

अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए

शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए

Thursday, December 9, 2010

'दाग़ ए दिल' {Ghazal} -Hafeez Merathi

अजीब लोग हैं क्या मुंसिफ़ी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है

ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाए नाला-ओ-फ़रियाद शायरी की है

ज़रा से पांव भिगोए थे जाके दरिया में
ग़ुरूर ये है कि हमने शनावरी की है

इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा
ये क़त्ल-ऐ-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है

हमारी क़द्र करो चौदहवीं के चाँद हैं हम
ख़ुद अपने दाग़ दिखाने को रौशनी की है

उदासियों को 'हफ़ीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को ज़रूरत शगुफ़्तगी की है

Monday, December 6, 2010

Message of peace अमन का पैग़ाम (एक इच्छा और वसीयत भारत माता की)



पैग़ाम है  माँ  का  ये  बेटे  के  नाम
 तेरा काम
है देना अमन का पैग़ाम

क्या माँ ने झूठ बोला था सोचा बहुत सुबह शाम
फिर सवाल किया मैंने लेकर प्रभु का नाम
निहारा उसने ऐसे मुझको जैसे मैं घनश्याम
फिर यूँ बोली मुझसे बेटा मत दे इल्ज़ाम
जो कहा उसे तू इक वसीयत समझ मेरी
जिसे पूरा करना ही अब है तेरा काम
हंस यहां अपशकुन करे जंगल जले तमाम
हर पेड़ पे लिखना अल्लाह तू पात पात पे राम
अपने रूप सा सुंदर तू बनाना दुनिया सारी
हर जन को पहुंचाकर 'अमन का पैग़ाम'
(मशहूर शायर जनाब अमीर नहटौरी के कलाम से मुतास्सिर होकर)

आग नफ़रत की दिलों से तुम बुझा दो लोगो
प्यार के फूल गुलशन में फिर खिला दो लोगो

हमने वेद ओ क़ुरआन से यही सीखा है
दर्स वहदत का दुनिया को पढ़ा दो लोगो

एक थे एक हैं और एक रहेंगे हम सदा
यह अमल करके दुश्मन को दिखा दो लोगो

विनती हरेक से यही करता है अनवर
धर्म के लिए मत की हर दिवार गिरा दो लोगो
(मशहूर शायर जनाब अमीर नह्टोरी के कलाम से मुतास्सिर होकर)

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वहदत-एकत्व