Saturday, April 28, 2012

विवाद -एक लघुकथा डा. अनवर जमाल की क़लम से Dispute (Short story)

जंगल में लकड़बग्घों का एक समूह रहता था। जवान लकड़बग्घे शिकार करते, बच्चे खिलवाड़ करते और बूढ़े इंतेज़ार।
एक दिन छोटे छोटे बच्चों ने देखा कि कुछ जवान लकड़बग्घों ने एक हिरन के पीछे दौड़ लगाई और फिर उसे घेर कर पकड़ लिया। किसी लकड़बग्घे ने उसके कूल्हों में अपने पंजे गड़ाए तो किसी ने अपने मुंह से उसके पैर पकड़ लिए और किसी ने उसकी गर्दन दबा ली। तड़पते हुए हिरन ने भी हाथ पांव मारे। बच्चों के सामने शिकार का यह पहला मौक़ा था। उन्होंने यह मंज़र पहली बार देखा था। वे भाग कर अपने बूढ़ों के पास पहुंचे और बोले-‘बाबा, बाबा, वहां न, एक हिरन बहुत झगड़ा कर रहा है।‘
बूढ़ों ने इत्मीनान से जवाब दिया-‘बच्चों ये हिरन बहुत बदमाश होते हैं। जब भी पकड़ो तभी विवाद शुरू कर देते हैं।
बच्चों ने मुड़कर हिरन की तरफ़ देखा। उसके हाथ पांव अब नहीं हिल रहे थे। विवाद पूरी तरह शांत हो चुका था।
बूढ़ा बरगद, नीम, पीपल और झाड़ियां बस ख़ामोश तमाशाई थे। वे कभी विवाद में नहीं पड़ते।


14 comments:

Shikha Kaushik said...

nice

रविकर said...

आभार भाई जी ||

मनोज कुमार said...

विवाद का निपटारा -- बहुत ही सांकेतिक शब्दों में आपने गहन बात समझा दी है। आभार।

कुमार राधारमण said...

तमाशबीन ख़ुद तमाशा बन जाएं,तब भी कोई फर्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उनके भी अपने कुछ पुराने समर्थक होते हैं,कुछ तुरत-फुरत बन जाते हैं। इसलिए,ज़रूरत इस बात की है कि नाख़ून वालों के लिए ही भलमनसाहत में रास्ता एकदम से ख़ाली न छोड़ दिया जाए। अन्यथा,उन जैसों की जमात जंगलराज क़ायम कर देगी। मध्यस्थों,मध्यमार्गियों और विवेकियों को अपनी भूमिका का लगातार निर्वाह करते रहना ही समाधान है।

zeashan haider zaidi said...

Shayad ye kahani kisi khas rajya ki ha.

डा श्याम गुप्त said...

क्या बात है...सुन्दर लोक कथा का सामयिक प्रस्तुतीकरण....हर युग, हर समाज-देश के लिये सच...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

udaya veer singh said...

सारगर्भित रचना उन्नत सोपानों को स्पर्श करती, बहुत कुछ कहती हुयी अपने उद्दश्यों में सफल है.... प्रभावशाली सृजन ....शुभकामनायें डॉ, साहब

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

अपने आप बोलती ये कहानी, सरल शब्दों में उत्कृष्ट रचना है.

M VERMA said...

ऐसे भी विवाद शांत किये जाते हैं

डॉ टी एस दराल said...

प्रकृति में कोई विवाद नहीं होते . यह काम तो बस इंसानों का है .

Sadhana Vaid said...

एक सार्थक एवं सारगर्भित कथा ! बहुत सुन्दर !

S R Bharti said...

उन्नत सोपानों को स्पर्श करती, सारगर्भित रचना बहुत कुछ कहती हुयी अपने उद्दश्यों में सफल है.... शुभकामनायें

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...