Friday, March 22, 2013

पीपल और खजूर, कब तक रहेंगे दूर ? peepal & khajoor


वह हरियाली की धरती है। वहां भरपूर पानी है। सर्दी, गर्मी और वसंत हरेक मौसम वहां है। कहीं रेगिस्तान होता है तो कहीं केवल चट्टानें और कहीं महज़ मैदान लेकिन वहां ये तीनों हैं। वहां नदियां भी हैं और उनका सनम समंदर भी। वह वाक़ई बड़ा अजीब देश है। वहां एक ही गांव में पीपल और खजूर एक साथ उगते हैं। वहां के लोग भी ऐसे ही हैं। खजूर वाले आदमी पीपल के नीचे बने चबूतरे पर बैठ जाते हैं और पीपल वाले आदमी खजूर पर चढ़ जाते हैं। गांव में पहले भी ऐसा था और आज भी ऐसा ही है। जिन्होंने गांव छोड़ दिए हैं। उनके मिज़ाज थोड़े बदल गए हैं। उनकी भी मजबूरी है। उन्हें तरक्क़ी करनी है। गांव का चलन शहर में भी बाक़ी रखते तो लोग उन्हें गंवार कहते।
गांव में आदमी ज़बान का पक्का होता है। शहर में आदमी काग़ज़ का पक्का होता है, ज़बान पर यहां कोई ऐतबार नहीं करता और कोई कर ले तो फिर वह ख़ुद ऐतबार के लायक़ नहीं रह जाता। इस देश की आत्मा गांवों में बसती है। शहर जाने के लिए लोगों ने गांव छोड़ा तो उन्होंने अपनी आत्मा भी वहीं छोड़ दी। पीपल वालों ने भी छोड़ दी और खजूर वालों ने भी छोड़ दी। यहां शहर वालों का मिज़ाज भी सबका एक है।
यहां के शहर भी अजीब हैं। यहां पीपल नहीं होता लेकिन उसकी याद में कुछ लोग शाखाएं लगा लिया करते हैं। कहते हैं कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं। 
कोई पूछ बैठे कि किससे कर रहे हैं तो कहते हैं कि खजूर वालों से !
शहर में कुछ हो या न हो लेकिन कम्प्टीशन बड़ा सख्त है। खजूर वाले भी कम्प्टीशन में हैं। खजूर में पीपल जैसी शाखाएं नहीं होतीं। सो वे शाखाएं तो नहीं लगा पाए। उन्होंने कैम्प लगा लिए। वे ट्रेनिंग देने लगे। कहते हैं कि हम अपनी रक्षा कर रहे हैं।
कोई पूछता है कि किस से कर रहे हो तो कहते हैं कि पीपल वालों से!
पीपल वाले सरकारी ओहदों पर हैं। छोटे से लेकर बड़े ओहदों तक सब जगह यही हैं। कहीं कहीं खजूर वाले भी हैं। पीपल वालों की पांचों उंगलियां तर हैं। खजूर वालों की बांछें तक तर नहीं हो पा रही हैं। ऊपर की कमाई के मामले में भी पीपल वाले ही ऊपर हैं। खजूर वाले भी ऊपर आना चाहते हैं। पीपल वाले उन्हें ऊपर नहीं आने देना चाहते। एक अच्छा ख़ासा संघर्ष चल रहा है। पीपल वालों ने इसे धर्मयुद्ध घोषित कर दिया है तो खजूर वाले इसे जिहाद से कम मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसी को राजनीति कहा जाता है। दोनों ही राजनीति कर रहे हैं। पीपल वाले कूटनीति भी कर लेते हैं। सो वे भारी पड़ जाते हैं। शहरों में यही सब चल रहा है। अब थोड़ा थोड़ा गांवों में भी शहरीकरण होता जा रहा है लेकिन फिर भी वहां आत्मा है। वहां अब भी शांति है। 
आज भी शहर वाले गांव पहुंचते हैं तो उनमें आत्मा लौट आती है। उनके मुर्दा ज़मीर ज़िंदा हो जाते हैं। थोड़ी देर के लिए वे इंसान बन जाते हैं। खजूर वाला फिर पीपल के चबूतरे पर जा बैठता है और पीपल वाले खजूरों पर ढेले फेंकने का सुख लेते हैं। जिसके हाथ जो लग जाए, उसी को लेकर ख़ुश हो जाते हैं। किसी के हाथ एक भी न लगे तो उसे ज़्यादा वाला अपनी खजूरों में से दे देता है।
यह वाक़ई अजीब धरती है। यहां स्वर्ग की सी शांति है। यहां ईश्वर मिलता है। सारी दुनिया से लोग यहां ईश्वर को ढूंढने आते हैं। जिन्हें ईश्वर नहीं मिलता। प्रेम उन्हें भी मिल जाता है। यहां रिश्ते स्थायी हैं। मरने के बाद तक की बुकिंग एडवांस में रहती है। रिश्ते सबसे बड़ी दौलत हैं। रिश्तों का प्यार सचमुच सबसे बड़ी दौलत है। हर रिश्ते का यहां अलग नाम है। जिस रिश्ते का दुनिया में कोई नाम न होगा, यहां उसका भी अलग नाम होगा। दुनिया का सबसे बड़ा दौलतमंद देश यही है।
यहां हर आदमी दौलतमंद है। दौलतमंद लोगों के पीछे लुटेरे लग ही जाते हैं। यहां के लोगों के पीछे भी लुटेरे लगे हुए हैं। यहां के लोग ख़तरे में जी रहे हैं। लुटेरे भी अपने ही हैं। इसीलिए लोग ख़ामोश हैं। यहां अपनाईयत बहुत है। लुटेरे अपने हों तो वे उन्हें भी कुछ नहीं कहते।
यह अपनाईयत देखकर आंखें नम हो जाती हैं। यहां इसी नमी की ज़रूरत है। अल्लामा इक़बाल ने भी कहा है कि
‘ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बड़ी ज़रख़ेज़ है साक़ी‘
मिट्टी सचमुच अच्छी है, बस एक साक़ी चाहिए।
अल्लामा इक़बाल ने ये भी कहा था कि 
‘यह दौर अपने बराहीम की तलाश में है‘
इबराहीम (अ.) के नाम में से ‘इ‘ हटाकर उन्होंने ‘बराहीम‘ कहा तो ब्रहमा का गुमान हो जाता है। सब इन्हें अपना बड़ा मानते हैं और बहुत बड़े बड़ों के ये सचमुच ही बाप हैं। इनका घर आंगन बहुत बड़ा है। पीपल भी इनका है और खजूर भी इनकी ही है। इन्हीं के कुम्भ में अमृत रहता है। जिसके पास भी आज अमृत है। उसे वह इन्हीं के कुम्भ से मिला है। 
इस मिट्टी को अमृत से ही नम होना है। अमृत कुम्भ में छिपाया गया है। वास्तव में परमेश्वर का सबसे गोपनीय नाम ही अमृत है। उस नाम का अंतिम अक्षर ‘ह‘ है और कुम्भ के ‘भ‘ (ब+ह) में यही अक्षर छिपा है। यह रहस्य हमेशा रहस्य नहीं रहेगा। पीपल हमेशा खजूर से दूर नहीं रहेगा।

2 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत अच्छा भाव ,सुन्दर प्रस्तुति
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कविता रावत said...

बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ...